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मेरा ही पुर-सुकूँ चेहरा बहुत था / मलिकज़ादा 'मंजूर'

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मेरा ही पुर-सुकूँ चेहरा बहुत था
मैं अपने आप में बिखरा बहुत था

बहुत थी तिश्‍नगी दरिया बहुत था
सराबों से ढका सहरा बहुत था

सलामत था वहाँ भी मेरा दामाँ
बहारों का जहाँ चर्चा बहुत था

उन्हें ठहरे समंदर ने डुबोया
जिन्हें तूफाँ का अंदाज़ा बहुत था

उड़ाता ख़ाक क्या मैं दस्त ओर दर की
मेरे अंदर मेरा सहरा बहुत था

ज़मीं क़दमों तले नीची बहुत थी
सरों पर आसमाँ ऊँचा बहुत था