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"मेरी अक्ल-ओ-होश की / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर

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मेरी अक्ल-ओ-होश की सब हालते
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मेरी अक्ल-ओ-होश की सब आसाईशें
तुमने सांचे में ढाल दी
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तुमने सांचे में ज़ुनूं के ढाल दी
कर लिया था मैंने अहदे कर के इश्क
+
कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क
तुमने बाहे फिर गले में डाल दी
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तुमने फिर बाँहें गले में डाल दी
  
यू तो अपने कसदाने दिल के पास
+
यूँ तो अपने कासिदाने-दिल के पास
 
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
 
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते औरो के नाम
+
जो लिखे जाते थे औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम है
+
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम हैं
  
ये तेरे खत तेरी खुशबू  
+
ये तेरे खत, तेरी खुशबू, ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल,
ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल
+
मताऐ-जाँ है तेरे कौल-ओ-कसम की तरह
मताए जा है तेरे  
+
कसम की तरह
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गुज़रता साल मैने
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गुजश्ता सालों मैनें इन्हे गिन के रखा है
इनहे मैने गिन के रखा था
+
किसी गरीब की जोड़ी हुई रकम की तरह  
किसी गरीब की जोड़ी हुई  
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रकम की तरह  
+
  
है मुहब्ब्त हयात की नज़र
+
है मुहब्ब्त हयात की लज्जत
वरना कुछ हज़्ज़त-ए-हयात नहीं  
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वरना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं  
क्या इज़ाज़त है एक बात कहू
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क्या इज़ाज़त है एक बात कहूँ
 
मगर खैर कोई बात नहीं
 
मगर खैर कोई बात नहीं
 
  
 
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22:15, 9 अगस्त 2011 का अवतरण

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मेरी अक्ल-ओ-होश की सब आसाईशें
तुमने सांचे में ज़ुनूं के ढाल दी
कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क
तुमने फिर बाँहें गले में डाल दी

यूँ तो अपने कासिदाने-दिल के पास
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते थे औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम हैं

ये तेरे खत, तेरी खुशबू, ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल,
मताऐ-जाँ है तेरे कौल-ओ-कसम की तरह

गुजश्ता सालों मैनें इन्हे गिन के रखा है
किसी गरीब की जोड़ी हुई रकम की तरह

है मुहब्ब्त हयात की लज्जत
वरना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं
क्या इज़ाज़त है एक बात कहूँ
मगर खैर कोई बात नहीं