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मेरी दृष्टि में / राजेन्द्र सारथी

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मैं उन सभी कविताओं को खारिज करता हूं
जो आदमी के सरोकारों से बाबस्ता नहीं
मेरी दृष्टि में बेकार हैं वे कविता
जो अंधेरे में अंधेरे का हिस्सा बन जाती हैं।

मैं यह नहीं कहता
कि कविता में तितली और भंवरों को प्रतिबंधित कर दिया जाए
या फूल और उनकी महक की बात न की जाए
लेकिन जब अन्नदाता की फसल अन्नदाता को ही खाने लगे
कारखाने जब मजदूरों के लिए कसाईघर बन जाएं
राजनीति जा लंपटों के लिए हथियार बन जाए
न्यायाधिकारी जब न्याय नहीं फैसला सुनाएं
ऐसे वक्त में चंदा की चांदनी और कोयल की रागनी अलापना
मेरी दृष्टि में अमानवीयता है, असाहित्यिकता है।

आप भले ही मेरी बात से इत्तफाक न रखें
लेकिन यह तो आप मानेंगे ही
कि कविता जिंदगी के लिए होनी चाहिए
जिन्दगी को रास्ता दिखाने वाली होना चाहिए।

इसीलिए मैं उन सभी कविताओं को खारिज करता हूं
जो आदमी के सपनों को मिटाती हैं
मेरी दृष्टि में बेकार हैं वे कविता
जिनका चरित्र लिजलिजा और आत्मकेन्द्रित है
जब आधुनिकता की आड़ में अश्लीलता परोसी जा रही हो
जब समाज में पारिवारिक संबंधों की पवित्रता बिलख रही हो
जब जननी को अपने जिबह होते भ्रूण की चीख न सुनाई देती हो
जब आदमी की आदमी से इतनी दूरी हो
कि एक तो रोटी हाथ पर रखकर खाए
और दूसरा आसन पर बैठकर थाली में
ऐसे वक्त में रसरंग के गीत गाना
मेरी दृष्टि में अमानवीयता है, असाहित्यिकता है।

बेशक आप मेरी बात से असहमत हों
आपके पास कविता के कई पहलुओं वाले तर्क भी हों
लेकिन मेरी इस बात से आप बाहर नहीं जा सकते
कि उदर की भूख सबसे ऊपर है
कविता में उस संवेदना को नकारा नहीं जाना चाहिए।

इसीलिए मैं उन सभी कविताओं को खारिज करता हूं
जो आम आदमी के जेहन में नहीं उतर पातीं
मेरी दृष्टि में बेकार हैं वे कविता
जो शब्दों की गुंजलक में फंसाए रखती हैं अपने अर्थ को
मैं कलावाद का सिरे से विरोधी नहीं हूं
मैं मानता हूं--कलात्मकता होनी ही चाहिए कविता के कहन में
किन्तु जिसके लिए कविता कही जाए
वही उसको समझने से वंचित रह जाए
जिस संवेदना को आप अपनी कविता में आलोड़ित करें
उसे महसूस करने के लिए उपादानों की जरूरत पड़े
ऐसी अमूर्त कविताओं को
मैं सिर्फ मानसिक अय्यासी कहूंगा
और कुछ नहीं!

जब जरूरत है कविताओं में सामयिकता दर्ज करने की
जब जरूरत है कविताओं में ऊर्जा भरने की
जब जरूरत है कविताओं के मरहम बनने की
ऐसे वक्त में कवि का चारण बनना
मेरी दृष्टि में अमानवीयता है, असाहित्यिकता है।

भले ही आप मेरी बात के विरोध में खड़े हों
भले ही आप चारणवृत्ति को कोई सुथरा नाम देकर गर्व करें
लेकिन जब इतिहास हर लम्हे को छानेगा अपनी छलनी में
उस समय आडंबरी कविताएं दुतकारी जाएंगी/धिक्कारी जाएंगी।