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"मेरी नज़रें तुमको छूतीं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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रेशम जैसा तन है
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जो तुमको छूकर उड़ती हैं
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कितना मादक उन प्रकाश की बूँदों का यौवन है
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रूप नदी में छप-छप करते
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चंचल मन को सूझ रही है
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केवल शैतानी
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पोथी पढ़कर सुख की दुख की
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धीरे-धीरे मन का बच्चा
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ज्ञानी हो जाएगा
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तन का आधे से भी ज़्यादा
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हिस्सा होता केवल पानी
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तभी जान पाएगा
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जीवन मरु में
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तुम्हें हमेशा साथ रखेगा
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जब समझेगा अपनी नादानी
 
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22:09, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

मेरी नज़रें तुमको छूतीं
जैसे कोई नन्हा बच्चा
छूता है पानी

रंग रूप से मुग्ध हुआ मन
सोच रहा है कितना अद्भुत
रेशम जैसा तन है
जो तुमको छूकर उड़ती हैं
कितना मादक उन प्रकाश की बूँदों का यौवन है

रूप नदी में छप-छप करते
चंचल मन को सूझ रही है
केवल शैतानी

पोथी पढ़कर सुख की दुख की
धीरे-धीरे मन का बच्चा
ज्ञानी हो जाएगा
तन का आधे से भी ज़्यादा
हिस्सा होता केवल पानी
तभी जान पाएगा

जीवन मरु में
तुम्हें हमेशा साथ रखेगा
जब समझेगा अपनी नादानी