भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र' }} category: ग़ज़ल <poem> '''लेखन वर्ष:...)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
  
'''लेखन वर्ष: 2004
+
'''लेखन वर्ष: २००४/२०११'''
  
 
मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है
 
मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है
तुमको चाहा है मैंने अगर इसमें कुछ ग़लत नहीं है
+
तुमको चाहा है मैंने गर इसमें कुछ ग़लत नहीं है
  
 
दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
 
दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
 
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है
 
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है
  
आँखों को मेरी सुकून आया है तेरी हसीन सूरत देखकर
+
मेरे दिल को सुकून आया है तेरी सूरत देखकर
किसी चेहरे से सुकूनो-सबात पाना कुछ ग़लत नहीं है
+
यूँ किसी चेहरे से सुकूनो-सबात कुछ ग़लत नहीं है
  
मैं ने अगर देखा है तेरी आँखों में तो तूने भी देखा है
+
जो मैंने देखा तेरी आँखों में वो तुझे मालूम है
मोहब्बत की नज़र से किसी को देखना कुछ ग़लत नहीं है
+
मोहब्बत की नज़र से तुझे देखना कुछ ग़लत नहीं है
  
डरते हो क्या तुम अपने-आप से या फिर जानकर किया सब
+
डरते हो तुम अपने-आप से या फिर यूँ ही किया सब
 
पहले प्यार में दिल का उलझ जाना कुछ ग़लत नहीं है
 
पहले प्यार में दिल का उलझ जाना कुछ ग़लत नहीं है
 +
 
</poem>
 
</poem>

00:21, 12 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


लेखन वर्ष: २००४/२०११

मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है
तुमको चाहा है मैंने गर इसमें कुछ ग़लत नहीं है

दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है

मेरे दिल को सुकून आया है तेरी सूरत देखकर
यूँ किसी चेहरे से सुकूनो-सबात कुछ ग़लत नहीं है

जो मैंने देखा तेरी आँखों में वो तुझे मालूम है
मोहब्बत की नज़र से तुझे देखना कुछ ग़लत नहीं है

डरते हो तुम अपने-आप से या फिर यूँ ही किया सब
पहले प्यार में दिल का उलझ जाना कुछ ग़लत नहीं है