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'''लेखन वर्ष: 2004२००४/२०११'''
मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है
तुमको चाहा है मैंने अगर गर इसमें कुछ ग़लत नहीं है
दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है
आँखों मेरे दिल को मेरी सुकून आया है तेरी हसीन सूरत देखकरयूँ किसी चेहरे से सुकूनो-सबात पाना कुछ ग़लत नहीं है
मैं ने अगर जो मैंने देखा है तेरी आँखों में तो तूने भी देखा वो तुझे मालूम हैमोहब्बत की नज़र से किसी को तुझे देखना कुछ ग़लत नहीं है
डरते हो क्या तुम अपने-आप से या फिर जानकर यूँ ही किया सब
पहले प्यार में दिल का उलझ जाना कुछ ग़लत नहीं है
 
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