भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी हसरत अजाने में मेरा ईमान ले लेगी / गोविन्द राकेश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी हसरत अजाने में मेरा ईमान ले लेगी
कि रुख़्सत ही नहीं होती मुसीबत जान ले लेगी

किसी ने बद दुआ दे दी मुझे ये महसूस होता है
हसद उसकी किसी दिन तो मेरी पहचान ले लेगीं

कोई बरकत तिजारत में नज़र आती नहीं अब तक
मईषत ये कभी चुपके से सब की शान ले लेगी

ज़माने ने नज़ारों के तो कितने रंग बदले हैं
पुरानी नज़्म मेरी भी नया उन्वान ले लेगी

बढ़ी महंगाई है इतनी कि हर त्यौहार फ़ीके हैं
ये ख़ाली जेब तो बच्चों के सब अरमान ले लेगी