भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरे गीत, तुम्हारा स्वर / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= नाव सिन्धु में छोड़ी / ग…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
(कोई अंतर नहीं)

08:35, 20 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण


मेरे गीत, तुम्हारा स्वर हो
क्या फिर मेरे शब्दों की भी धूम न नगर-नगर हो!
 
युग से मौन पड़ी जो वीणा
रागरहित, धूसर, श्री-हीना
तुम चाहो तो तान नवीना
उससे क्या न मुखर हो!
 
हो रवीन्द्र या त्यागराज हो
बिना सुरों के व्यर्थ साज हो
गायक जब सहृदय समाज हो
गायन तभी अमर हो

मेरे गीत, तुम्हारा स्वर हो
क्या फिर मेरे शब्दों की भी धूम न नगर-नगर हो!