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मेरे चेहरे पर मुहब्बत का असर छोड़ गया / कविता सिंह

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मेरे चेहरे पर मुहब्बत का असर छोड़ गया।
जाते-जाते वह कोई ऐसी नज़र छोड़ गया॥

मौज-दर-मौज मुझे ग़म तो सताता ही रहा-
दर्द की लहरों पर वह शामो-सहर छोड़ गया।

वो सुखनवर था बड़ी उम्दा ग़ज़ल कहता था-
अश्के-तहरीर में वह अच्छी बहर छोड़ गया।

जाने कैसी ये उदासी है मेरे आँगन में-
जाते-जाते भी कोई अपना असर छोड़ गया।

जाने आग़ाज़ मोहब्बत का हुआ था कि नहीं-
कोई आया था मुझे ज़ख़्मी ज़िगर छोड़ गया।

मेरी आँखों में सजा कर वह हसीं ख़्वाबों को-
रात ग़ुज़री तो उदासी की सहर छोड़ गया।

क्या गुज़रती है कभी सोचिए उस पर एे 'वफ़ा' -
जिसका भी नूरे नज़र लख़्ते जिगर छोड़ गया।