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"मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़सत कर दो / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

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09:05, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण


मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़सत कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर
तुम्ही तन्हा मेरे ग़म-खाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद