भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी हैं.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी है | मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी है | ||
− | + | मगर कैसे बताऊँ मैं ये किसकी मेहरबानी है | |
− | + | ये अपने आइने की हमने क्या हालत बना डाली | |
− | + | कई चेहरे हटाने हैं, कईं यादें मिटानी हैं | |
− | + | तुम्हें हम फासलों से देखते थे औ'र मचलते थे | |
सज़ा बन जाती है कुरबत, अजब दिल की कहानी है | सज़ा बन जाती है कुरबत, अजब दिल की कहानी है | ||
− | मिटा कर नक्श कदमों के, | + | मिटा कर नक्श कदमों के, चलो अनजान बन जाएँ |
मिलें शायद कभी हम-तुम, कि लंबी ज़िंदगानी है | मिलें शायद कभी हम-तुम, कि लंबी ज़िंदगानी है | ||
− | वफ़ा के नाम | + | वफ़ा के नाम पर 'श्रद्धा' न हो कुर्बान अब कोई |
कहानी हीर-रांझा की पुरानी थी, पुरानी है | कहानी हीर-रांझा की पुरानी थी, पुरानी है | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
19:01, 15 फ़रवरी 2012 का अवतरण
मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी है
मगर कैसे बताऊँ मैं ये किसकी मेहरबानी है
ये अपने आइने की हमने क्या हालत बना डाली
कई चेहरे हटाने हैं, कईं यादें मिटानी हैं
तुम्हें हम फासलों से देखते थे औ'र मचलते थे
सज़ा बन जाती है कुरबत, अजब दिल की कहानी है
मिटा कर नक्श कदमों के, चलो अनजान बन जाएँ
मिलें शायद कभी हम-तुम, कि लंबी ज़िंदगानी है
वफ़ा के नाम पर 'श्रद्धा' न हो कुर्बान अब कोई
कहानी हीर-रांझा की पुरानी थी, पुरानी है