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'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स''' | '''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स''' |
16:00, 6 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स
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मेरे पास एक किताब है
उसके मुख-पृष्ठ पर चश्मा लगाए
एक बूढ़ा आदमी
दोनों हाथों से कोई चिड़िया उड़ा रहा है
किताब के भीतर पक्षी ही पक्षी हैं
जब भी खोलता हूँ किताब
फड़फड़ाने लगते हैं पंख
रात सपना क्या देखता हूँ
एक चिड़िया किताब में बैठी रो रही है
और पूरी की पूरी किताब भीग गई है
(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है