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09:10, 5 जुलाई 2014
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मेरे प्रेम दिये को भाता तेरा अँगना था।शायद किस्मत में तेरे होंठों से बुझना था। मुझे पिलाकर लूट लिया जिसने वो भी साबुत बचा गैर नहीं होता।,रब अगर लापता नहीं होता।मेरे दिल में रहने वाला मेरा अपना था।
झूठ ने इस कदर पिला दी मयजाने से पहले वो सीने से लग के रोई,पाँव पर सच खड़ा नहीं होता।था वो लम्हा या कोई दिन का सपना था।
ताज को छू के मौलवी कह देछोड़ गए सब रहबर साथ मेरा बारी बारी,पत्थरों में ख़ुदा नहीं होता।मैं था एक मुसाफिर मुझको फिर भी चलना था।
नूर सूरज से छीन लेता अब ज़िंदा हूँ या मुर्दा ये कहना मुश्किल है,पेड़ यूँ ही हरा नहीं होता।प्यार न देती गर विष में वो तब तो मरना था।
लूट लेते हैं फूल को काँटेफ़र्क़ नहीं था जीत हार में कहता है ‘सज्जन’,आज दुनिया में क्या नहीं होता।अपने दिल के टुकड़े से ही उसको लड़ना था।
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