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मेरे मन से कृतित्व का मोह हटा दे; / गुलाब खंडेलवाल

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मेरे मन से कृतित्व का मोह हटा दे;
शब्दों का आवरण भेदकर
मैं तेरे रूप का दर्शन कर सकूँ,
हृदय में वही प्रीति जगा दे;
 
मेरे मन से कीर्ति का मोह हटा दे;
उपेक्षा का आवरण भेदकर
मैं तेरे प्रेम का दर्शन कर सकूँ,
जीने की वही रीति सिखा दे;
 
मेरे मन से समृद्धि का मोह हटा दे;
भूतियों का आवरण भेदकर
मैं तेरी पराविभूति के दर्शन कर सकूँ
सत्य की वही प्रतीति करा दे.