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मैंने तेरा मन माँगा था तूने जीवन माँग लिया है / संदीप ‘सरस’

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मैंने तेरा मन माँगा था तूने जीवन माँग लिया है।
सपनों के सजने से पहले तूने आँगन माँग लिया है।

मेरा उस पथ से क्या नाता तेरे द्वार नहीं जो जाए।
वह पुरवाई व्यर्थ जो तेरे आने का आभास न लाए।

चाहत मेरी श्रवण सरीखी तुम दशरथ के तीर बन गए,
साँसो की सरगम से पहले तूने धड़कन माँग लिया है।1।

साँसो की साँकल खटकाई तेरे मन में द्वार न खोले।
फिर भी मेरे आकुल मन ने पानी में प्रतिबिंब टटोले।

एकलव्य सा हृदय बिचारा द्रोण सरीखी तुम निर्मोही,
प्रतिमा के अर्चन से पहले तूने चंदन माँग लिया है।2।

अनचाहे से अनुबंधों ने जब जब मन की व्यथा छुई है।
मेरे अभिशापित अधरों की पीड़ा तब तब विवश हुई है।

प्रश्न कर्ण से तीखे मेरे, तुम कुंती की भाँति मौन हो,
रिश्तो के जुड़ने से पहले तूने बिछुड़न माँग लिया है।3।