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मैंने शोहरत नहीं कमाई है / डी .एम. मिश्र

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मैंने शोहरत नहीं कमाई है
घर की दौलत भी सब लुटाई है

इस फ़क़ीरी में कितनी मस्ती है
जिंदगी लाजवाब पाई है

उनके हिस्से में सब इनाम गये
मेंरी तक़दीर में रूसवाई है

गुम रहा आपके मैं जलवों में
रात भर नींद नहीं आई है

यह भी अब याद नहीं है मुझको
चोट कब , कितनी मैने खाई है

मैं कहां ख़ुद से आने वाला था
मौत मुझको यहां पे लाई है

क्यों किसी और को बदनाम करूं
अपनी करनी की सज़ा पायी है

फूंक दूं अपनी ख़्वाहिशें सारी
अब इसी में मेरी भलाई है