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मैं अपने हौसले को यकीनन बचाऊँगा / ज्ञान प्रकाश विवेक

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मैं अपने हौसले को यक़ीनन बचाऊँगा
घर से निकल पड़ा हूँ तो फिर दूर जाऊँगा

तूफ़ान आज तुझसे है , मेरा मुकाबला
तू तो बुझाएगा दीये, पर मैं जलाऊँगा

ये चुटकुला उधार लिए जा रहा हूँ मैं
घर में हैं भूखी बेटियाँ उनको हँसाऊँगा

गुल्लक में एक दर्द का सिक्का है दोस्तो,
बाज़ार जा रहा कि उसको भुनाऊँगा

अब सोचता हूँ दावतें दे कर मैं अब्र को
कागज़ के घर में उसको कहाँ पर बिठाऊँगा.