भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तुम्हारे गीत की वह पंक्ति होता एक / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:04, 25 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= ऊसर का फूल / गुलाब खंडेल…)
मैं तुम्हारे गीत की वह पंक्ति होता एक
प्रेम की आकुल प्रचुरता
हृदय की रख सब मधुरता
छंद में जिसका किया तुम चाहती अभिषेक
मलय खिड़की खड़खड़ाता
श्वेत कागज़ फड़फड़ाता
और झट लिखती जिसे तुम नील नभ में देख
शब्द-यति-गति जोड़ अस्थिर
गुनगुनाती तुम जिसे फिर
अर्धलेटी, युग हथेली पर चिबुक-तल टेक
मैं तुम्हारे गीत की वह पंक्ति होता एक