भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तेरा अक्स हूँ तुझसे कभी जुदा ही नहीं / कृष्ण कुमार ‘नाज़’
Kavita Kosh से
Krishna kumar naaz (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:35, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: मैं तेरा अक्स हूँ, तुझसे कभी जुदा ही नहीं ये बात और, तू आईना देखता ह…)
मैं तेरा अक्स हूँ, तुझसे कभी जुदा ही नहीं ये बात और, तू आईना देखता ही नहीं
कोई सवाल जो तुझसे जुड़ा नहीं होता मैं उस सवाल के बारे में सोचता ही नहीं
उन्हें ये ग़म है जो पाया था खो दिया सब कुछ हमें ये दुख है कि कुछ भी कभी मिला ही नहीं
मैं अपनी ज़ात की तारीकियों से वाक़िफ़ हूँ किसी चराग़ की लौ को कभी छुआ ही नहीं
बदल-बदल के वही तिश्नगी, वही सहरा जनम-जनम का वही क़र्ज़ जो चुका ही नहीं
शिकस्त जिसको मिली हो क़दम-क़दम पर ‘नाज़’ उसे ये लगता है जैसे कहीं ख़ुदा ही नहीं