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"मैं तेरी रोशनाई होना चाहती हूं / अलका सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

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* [[मैं तेरी रोशनाई होना चाहती हूं / अलका सिन्हा]]
मैं लौट जाना चाहती हूँ
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* [[            / अलका सिन्हा]]
शब्दों की उन गलियों में
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जहाँ से कविताएँ गुज़रती हैं
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कहानियों की गलबहियाँ डाले।
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मेरी तमाम परेशानियों, नाकामियों के विष को
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कंठस्थ कर लेने वाली नीलकंठ कलम
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मुझे रचने का सौंदर्य दे
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कि मैं स्याही से लिख सकूँ
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उजली दुनिया के सफ़ेद अक्षर।
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मुझे जज़्ब कर हे कलम !
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मैं तेरी रोशनाई होना चाहती हूँ।
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मैं काग़ज़ की देह पर
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गोदने की तरह उभर आना चाहती हूँ
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और यह बता देना चाहती हूँ
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कि काग़ज़ की संगमरमरी देह पर लिखी
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शब्दों की इबारत
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ताजमहल से बढ़कर खूबसूरत होती है।
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मुझे गढ़ने की ताकत दे हे ब्रह्म !
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मैं संगतराश होना चाहती हूँ।
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अपने मान-अपमान से परे
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अपने संघर्ष, अपनी पहचान से परे
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नाभि से ब्रह्मांड तक गुंजरित
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शब्द का नाद होना चाहती हूँ।
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मुझे स्वीकार कर हे कण्ठ
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मैं गुंजरित राग होना चाहती हूँ।
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20:44, 28 मई 2011 का अवतरण