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|रचनाकार=घनश्याम चन्द्र गुप्त
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मैं नचिकेता
मैंने यम के द्वार पहुंच कर दस्तक दी थी
द्वार खोल यम
मुझे न भाते मुक्ता-माणिक
स्वर्णमय मानव-निर्मित कलश-कंगूरे
हो न सका प्रज्ज्वलित दीप यदि अन्तर में तो
अनवरत साधना अनुशासन से ही निखरा
मैं शान्ति-प्रणेता आत्म-विजेता नचिकेता