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मोम के चेहरे अकेले / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
फूल-पत्ते
डर रहे हैं गुंबदों से
फूल-पत्ते
पेड़ पढ़ते रोज़
पतझर की कथाएँ
नाम हैं मीनार के
सारी हवाएँ
दिन चकत्ते
लग रहे दीवार पर हैं
दिन चकत्ते
मोम के चेहरे
अकेले शहद पीते
बंद कमरों के सफर में
रोज़ बीते
नये छत्ते
बन रहे हैं शहर भर में
नये छत्ते