भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोहब्बत का एक नज़रिया चुप्पी भी हो सकती है / सुजीत कुमार 'पप्पू'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 2 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुजीत कुमार 'पप्पू' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मोहब्बत का एक नज़रिया चुप्पी भी हो सकती है,
इश्क बयाँ करने का ज़रिया चुप्पी भी हो सकती है।
मिलना-जुलना कहना-सुनना, केवल ये आधार नहीं,
इज़हारों की सीधी प्रक्रिया चुप्पी भी हो सकती है।
गर कुछ कहना ही है तो आंखों से कह दो बात वही,
अहसास-ए-मोहब्बत की शुक्रिया चुप्पी भी हो सकती है।
छूअन-आलिंगन लीला-अवलीला सब इहलीला है,
एक अलग चाहत का दरिया चुप्पी भी हो सकती है।
दूर किसी कोने में बैठे याद ज़रा करके देखो,
जज़्बातों का अहसास प्रिया चुप्पी भी हो सकती है।