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"मो सम कौन कुटिल खल कामी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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मो सम कौन कुटिल खल कामी। | मो सम कौन कुटिल खल कामी। | ||
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जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥ | जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥ | ||
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भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी। | भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी। | ||
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हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥ | हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥ | ||
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पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी। | पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी। | ||
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सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥ | सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥ | ||
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शब्दार्थ :- कुटिल = कपटी। विषय = सांसारिक वासनाएं। | शब्दार्थ :- कुटिल = कपटी। विषय = सांसारिक वासनाएं। | ||
ग्रामी सूकर =गांव का सूअर। श्रीपति = श्रीकृष्ण से आशय है। | ग्रामी सूकर =गांव का सूअर। श्रीपति = श्रीकृष्ण से आशय है। |
16:04, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
राग सारंग
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥
शब्दार्थ :- कुटिल = कपटी। विषय = सांसारिक वासनाएं। ग्रामी सूकर =गांव का सूअर। श्रीपति = श्रीकृष्ण से आशय है।