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मो सम कौन कुटिल खल कामी / सूरदास

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राग सारंग


मो सम कौन कुटिल खल कामी।

जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥

भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।

हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥

पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।

सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥


शब्दार्थ :- कुटिल = कपटी। विषय = सांसारिक वासनाएं। ग्रामी सूकर =गांव का सूअर। श्रीपति = श्रीकृष्ण से आशय है।