भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हनैं ठाह है : एक / रमेश भोजक ‘समीर’

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:21, 19 जुलाई 2013 का अवतरण ('<poem>म्हनैं ठाह है उतावळो है दुसासन आपवाळां रो चीर-हर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हनैं ठाह है
उतावळो है दुसासन
आपवाळां रो
चीर-हरण खातर
अर आपां
हाथ माथै हाथ धर्यां
बैठां हां
एक-दूजै सूं अळघा
दूर.. दूर... दूर....
घणा-घणा दूर
कोसां रै आंतरै माथै
फगत उडीकां हां-
किसन नैं!