भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"म्हनैं ठाह है : पांच / रमेश भोजक ‘समीर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('<poem>म्हनैं ठाह है भीड़ होवै- गूंगी-बोळी अर बावळी! साव...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>म्हनैं ठाह है
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रमेश भोजक ‘समीर’
 +
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
 +
}}
 +
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
म्हनैं ठाह है
 
भीड़ होवै-
 
भीड़ होवै-
 
गूंगी-बोळी
 
गूंगी-बोळी

20:34, 15 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

म्हनैं ठाह है
भीड़ होवै-
गूंगी-बोळी
अर
बावळी!
 
सावळ
कोनी बोलै
कोनी सुणै
अर समझै तो दर नीं!
छव
म्हनैं ठाह है
सबदां रो मलम
आवै कोनी कोई काम
उण जगां
जठै हरिया होवै घाव
अर मुद्दो होवै गरम।