भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारो देवता / सतीश छींपा

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:46, 14 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश छींपा |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{KKCa…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक देवता मरग्यो
भोत पेलां
अर खुसगी पांखं
म्हारै नेहचै री ।

अबै कोई कहाणी कोनी बणै
ना ई कोई सबद ई जुडै सबद सूं
लागै जाणै
जिग्यां ई कोनी ऊबरी
म्हारै खातर
आं सबदां मांय
अर जे ऊबरिया है तो
फ़गत थोथा विचार !

म्हैं म्हारो
थकेलो लेय
पसर जावूं
निढाळ होय’र
सोच री बाथां में
देखूं म्हैं
म्हारै देवता नै
उण रै भोळापै नै
अर आंख्यां मांय़
बणती एक कहाणी नै....