भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना / फ़राज़

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:55, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

मेरे चिराग तो सूरज के हम-नसब निकले
गलत था अब के तेरी आंधियों का तखमीना

ये ज़ख्म खाईयो सर पर ब-पासे-दस्ते-सुबू
वो संगे-मोहतसिब आया, बचाईयो मीना

हमें भी हिज़्र का दुख है ना कुर्ब की ख्वाहिश
सुनो की भूल चुके हम भी अहदे- पारीना

उस एक शख्स की सज-धज गजब की थी फ़राज
मैं देखता था उसे, देखता था आईना

नाबीना - अन्धा, हम नसब - बराबर वाला, ब-पासे-दस्ते-सुबू - हाथ के जाम को बचाते हुए

संगे-मोहतसिब - धर्माधिकारी का पत्थर, अहदे-पारीना - पुराना वचन, पुराना युग.