भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह जो शाम सिन्दूरी है / सर्वत एम जमाल

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:41, 21 सितम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह जो शाम सिंदूरी है
सूरज की मजबूरी है

तेरी आदत है मुस्कान
अपनी तो मजबूरी है

और हिरन का जीवन बस
जितने दिन कस्तूरी है

दौलत या इज्जत ले लूँ
लेकिन कौन जरूरी है

आखिर कब मिट पाएगी
हम तुम में जो दूरी है

दफ्तर-दफ्तर है राइज
वह शै जो दस्तूरी है

सबके लिबासों में सर्वत
खुशबू क्यों काफूरी है?