भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह तन इक दिन होय जु छारा / जुगलप्रिया

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 20 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जुगलप्रिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatP...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह तन इक दिन होय जु छारा।
नाम, निशान न रहि है रंचहु भूलि जायगो सब संसारा।
काल घरी पूजी जब हू है लगै न छोड़त भ्रम जारा॥
या माया नरिन के बस में भूलि गयौ सुखसिंधु अपारा।
जुगल प्रिया अजहूँ किन चेतत मिलि हैं प्रीतम प्यारा॥