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"यह सितारों से भरी रात हमारी कब थी! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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कोई छींटा कभी उड़ता हुआ आया भी तो क्या | कोई छींटा कभी उड़ता हुआ आया भी तो क्या |
22:00, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
यह सितारों से भरी रात हमारी कब थी!
आपके प्यार की सौग़ात हमारी कब थी!
कोई छींटा कभी उड़ता हुआ आया भी तो क्या
झमझमाती हुई बरसात हमारी कब थी!
था वही बाग़, वही फूल, वही तुम थे मगर
फिर बहारों से मुलाक़ात हमारी कब थी!
आख़िरी वक़्त निगाहों में खिल उठे थे गुलाब
उनकी महफ़िल में चली बात हमारी कब थी!