भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याँ जो बंदे जहीन होते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:14, 26 फ़रवरी 2024 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यूँ जो बंदे ज़हीन होते हैं।
वही अक्सर मशीन होते हैं।

बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे,
और हम हैं घड़ी न होते हैं।

प्रेम के वो न टूटते धागे,
जिनके रेशे महीन होते हैं।

वन में उगने से, वन में रहने से,
पेड़ सब जंगली न होते हैं।

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ,
रात सपने हसीन होते हैं।

खट्टे मीठे घुले कई लम्हे,
यूँ नयन शर्बती न होते हैं।