भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याचक-दिन / ओमप्रकाश सारस्वत

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 15 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत |संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओम ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

द्वार-दिन
लम्बी दुपहरी के
खिड़कियों-से
हो गए लघुकाय
प्रहरी वे

ऊष्मा को शिशिर
चोरी कर गया
धूप का कर्जा चुकाते
दिवस-होरी मर गया
वह कर गया सूरज-महाजन के
गल्ले-सहित कुल बीज तक नीलाम
मालिक की देहरी पे

खरगोश के पांवों बंधे हैं दिन
या हिरण के कंधों चढ़े हैं दिन
ये पर्वतों के शिखर की माया
ये क्रौंच की काया हुए हैं दिन
ज्यों ग्रामीण गभरू
हो गए शहरी

ये यक्ष को अलका हुए हैं दिन
ये शक्ति से हल्का हुए हैं दिन
ये जीभ हैं चिड़ियों की या कि चोंच हैं
ये इतिहास क्यों कल-का हुए हैं दिन

या राग हों
शीतल दुपहरी के

ये कोट से जॉकेट हुए हैं दिन
ये हार से लॉकेट हुए हैं दिन
किसी सौ-गज़ी लम्बी इमारत के
ये दस-गज़े फाटक हुए है दिन
लम्बी आयु के
याचक-भिखारी ये