भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यात्रा / नवनीत पाण्डे

640 bytes removed, 11:59, 4 जुलाई 2010
किसी कुछ नहीं में ही
कुछ.............
आसमान जब तुम देख रहे होते हो आसमानआसमान ही दिखता है तुम्हेंवह ज़मीनकहीं नहीं होती आंखों मेंजो दिखाती है तुम्हें आसमानया तो तुम्हें पता नहीं हैया फिर तुमने भुला दिया हैआसमान के बिनाज़मीननहीं होती ज़मीनज़मीन के बिनाआसमाननहीं होता आसमान।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,480
edits