भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे / मोहम्मद रफ़ी 'सौदा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे
दिल बेचता हूँ कोई ख़रीदार भेज दे,

अपनी बिसात में तो यही दिल है मेरी जाँ
लेता नहीं तो क्या करूँ ऐ यार भेज दे

दावा जो बरशिगाल को आँखों से है मेरी
ऐसा कोई जो अब्र-ए-गुहर-बार भेज दे

देते हैं अक़्द-ए-हुस्न में आशिक़ उरूस-ए-जाँ
आता नहीं जो आप तो तलवार भेज दे

‘सौदा’ से ग़म-गुसार का था दिल ये तीं लिया
उस के इवज़ भला कोई ग़म-ख़्वार भेज दे