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युग का जुआ / हरिवंशराय बच्चन

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देख इनकी ओर,
माथे को झुका,
यह कीर्ति उज्व्म लउज्ज्वलपूज्यर पूज्य तेरे पूर्वजों की
अस्थियाँ हैं।
गूँजती तेरी शिराओं में
गिरा गंभीर यदि यह,
प्रतिध्वीनित प्रतिध्वनित होता अगर है
नाद नर इन अस्थियों का
आज तेरी हड्डियों में,
देख अपने वे
वृषभ कंधे
जिन्हेंध जिन्हें देता चुनौती
सामने तेरे पड़ा
युग का जुआ।
लेकिन ठहर,
यह बहुत लंबा,
बहुत मेहनत औ' मशक़् क़तमशक़्क़त
माँगनेवाला सफ़र है।
तै तय तुझे करना अगर है
तो तुझे
होगा लगाना
और करना एक
लोहू से पसीना।
 
मौन भी रहना पड़ेगा;
बोलने से
प्राण का बल
क्षीण होता;
शब्दण शब्द केवल झाग बन
घुटता रहेगा बंद मुख में।
फूलती साँसें
कहाँ पहचानती हैं
फूल-कलियों की सुरभि को
लक्ष्यह लक्ष्य के ऊपर
जड़ी आँखें
भला, कब देख पातीं
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