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ये अँधेरे भी रहेंगे / प्रताप नारायण सिंह

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ये अँधेरे भी रहेंगे
और उजाले भी रहेंगे

तप्त मरुथल में क्षुधा के
चिलचिलाती धूप होगी
तौलती पौरुष मनुज का
मृगतृषा बहु-रूप होगी

और कुछ लटके हुए
ऊपर निवाले भी रहेंगे

कुछ कहेंगे नित्य ही
बेरंग मौसम की कथाएँ
कुछ उकेरेंगे सदा ही
पतझड़ों की चिर व्यथाएँ

ताप पीकर, कुछ बसंती
गीत वाले भी रहेंगे

कुछ पहनकर नाचते
नरमुंड के गलहार होंगे
क्रन्दनों के शोर में
मदमत्त से हुंकार होंगे

बीच उनके लोग
पक्षी-श्वेत पाले भी रहेंगे

घोष "सच हरिनाम" के संग
कारवाँ बढ़ता रहेगा
इन मसानों का धुआँ
यूँ ही सतत चढ़ता रहेगा

पालने नित सोहरों के
साथ डाले भी रहेंगे