भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये जो आँखें जब-तब पानी-पानी होती हैं / सुरेखा कादियान ‘सृजना’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये जो आँखें जब-तब पानी-पानी होती हैं
कुछ टूटे रिश्तों की मेहरबानी होती हैं

वो जो क़िस्से बनकर ज़िंदा रहती हैं हरदम
तेरी-मेरी सी नायाब कहानी होती हैं

मिलते हैं ख़ंजर ही अब अपनों के हाथों में
मरहम वाली उंगलियाँ बेगानी होती हैं

तब उसको मोहब्बत भी हो जाती है मुझसे
जब उसको अपनी बातें मनवानी होती हैं

दिल तो जलता ही आया बरसों से,पर अब तो
बुझती उम्मीदें भी रोज जलानी होती हैं

जब वो चक्र-सुदर्शन मुरली धुन ढल जाता है
तब राधा सी मीरा सी दीवानी होती हैं