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ये सुरमई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमुनाहटें / फ़िराक़ गोरखपुरी

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ये सुर्मई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमनाहटें
मिलती हैं मुझको पिछले पहर तेरी आहटें।

इस कायनाते - ग़म की फ़सुर्दा फ़ज़ाओं में
बिखरा गये है आ के वो कुछ मुस्कुराहटें।

ऐ जिस्मे - नाज़नीने - निगारे - नज़रनवाज़
शुब्‍हे - शबे - विसाल तेरी मलगजाहटें।

पड़ती है आसमाने - मुहब्बत प छूट सी
बल बे जबीने-नाज़ तेरी जगमगाहटें।

चलती जब नसीमे-ख़याले-ख़रामे-नाज़
सुनता हूँ दामनों की तेरे सरसराहटें।

चश्मे - सियह तबस्सुमे-पिनहाँ लिये हुये
पौ फूटने से पहले उफ़ुक़ की उदाहटें।