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ये सुरमई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमुनाहटें / फ़िराक़ गोरखपुरी

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Amitabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 25 अगस्त 2009 का अवतरण

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ये सुरमई फ़ज़ाओं१ की कुछ कुनमुनाहटें
मिलती हैं मुझको पिछले पहर तेरी आहटें।*

इस कायनाते-ग़म की फ़सुर्दा२ फ़ज़ाओं में
बिखरा गये है आ के वो कुछ मुस्कुराहटें।

ऐ जिस्मे - नाज़नीने - निगारे -नज़रनवाज़३
शुब्‍हे - शबे - विसाल तेरी मलगजाहटें।

पड़ती है आसमाने - मुहब्बत प छूट सी
बल - बे - जबीने -नाज़ तेरी जगमगाहटें।

चलती जब नसीमे - ख़याले- ख़रामे-नाज़४
सुनता हूँ दामनों की तेरे सरसराहटें।

चश्मे -सियह तबस्सुमे - पिनहाँ५ लिये हुये
पौ फूटने से पहले उफ़ुक़ की उदाहटें।

जुम्बिश में जैसे शाख़ हो गुलहा-ए-नग़्मा की
इक पैकरे - जमील की ये लहलहाहटें।

झोकों की नज़्र है, चमने - इन्तिज़ारे -दोस्त
बादे - उम्मीदो - बीम की ये सनसनाहटें।

हो सामना अगर तो ख़िजिल हो निगाहे-बर्क़
देखी हैं अज़्व - अज़्व में वो अचपलाहटें।

किस देस को सिधार गयीं ऐ जमाले - यार
रंगीं लबों प खेल के कुछ मुस्कुराहटें।

रुख़सारे-तर से ताज़ा हो बाग़े-अदन की याद
और उसकी पहली सुब्‍ह की वो रसमसाहटें।

साजे - जमाल के नवाहा - ए - सर्मदी६
जोबन तो वो फ़रिस्ते सुने गुनगुनाहटें।

आज़ुर्दगी - ए - हुस्न७ भी किस दर्जा शोख़ है
अश्कों में तैरती हुई कुछ मुस्कुराहटें।

होने लगा है ख़ुद से करीं८, ऐ शबे-अलम९
मैं पा रहा हूँ हिज्र में कुछ अपनी आहटें।

मेरी ग़ज़ल की जान समझना उन्हे ’फ़िराक़’
शम्‍ए - खयाले - यार की ये थरथराहटें।

  • गोर्की की सुप्रसिद्ध कहानी ’छब्बिस आदमी और एक लड़की’ पढ़कर - ’फ़िराक़’


१ - वायुमण्डल, २ - उदास, ३ - नज़र को भला लगने वाले प्रिय का कोमल शरीर, ४- प्रेमिका के चलने की वायु की कल्पना, ५- छिपी मुस्कुराहट,
६- दैवी आवाजें, ७ - सौन्दर्य का दुःख (प्रेमिका की उदासी), ८- निकट, ९ - दुख की रात