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"यों तो रंगों की वो दुनिया ही छोड़ ही हमने / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की  / गुलाब खंडेलवाल
 
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यों तो रंगों की वो दुनिया ही छोड़ ही हमने
 
चोट एक प्यार की ताज़ा ही छोड़ ही हमने
 
 
सिर्फ आँचल के पकड़ लेने से नाराज़ थे आप!
 
अब तो ख़ुश हैं कि ये दुनिया ही छोड़ ही हमने
 
 
आप क्यों देखके आईना मुँह फिरा बैठे!
 
लीजिये, आपकी चरचा ही छोड़ ही हमने
 
 
क्या हुआ फूल जो होठों से चुन लिए दो-चार
 
और ख़ुशबू तेरी ताज़ा ही छोड़ दी हमने
 
 
पूछा उनसे जो किसीने कभी, 'कैसे हैं गुलाब?'
 
हँसके बोले कि वो बगिया ही छोड़ ही हमने
 
 
<poem>
 

03:27, 4 जुलाई 2011 के समय का अवतरण