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यों तो हर राह के पत्थर पे सर को मार लिया / गुलाब खंडेलवाल

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यों तो हर राह के पत्थर पे सर को मार लिया
नाम उनका ही मगर हमने बार बार लिया

जब किसी और ने मुड़कर भी न देखा इस ओर
हमने धीरे-से तुझे दिल में तब पुकार लिया

हमने जिस ओर भी रक्खे थे बेसुधी में क़दम
तूने उस ओर ही मंज़िल का रुख़ सुधार लिया

यों तो गुज़रे हैं इन आंखों से हसीन एक-से-एक
और ही था कोई दिल में जिसे उतार लिया

यह तो किस्मत न हमारी थी, मिले होते गुलाब
हमने काँटों से ही लेकिन ये घर सँवार लिया