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"योग-वियोग / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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तुम जो दुविधा में रही प्रेम की विवशता की
 
तुम जो दुविधा में रही प्रेम की विवशता की
 
तीर इस भाव से फेंका कि पार हो न सका 
 
तीर इस भाव से फेंका कि पार हो न सका 
मैं तड़पता ही रहा पीर लिए प्राणों में  
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मैं तड़पता ही रहा पीर लिये प्राणों में  
 
मरके भी मर न सका, हँस न सका, रो न सका  
 
मरके भी मर न सका, हँस न सका, रो न सका  
 
३.
 
३.

02:16, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


१.
आपसे दो बात होकर रह गयी 
रंग की बरसात होकर रह गयी
चाँद बदली के न बाहर आ सका
रात, काली रात होकर रह गयी
२.
तुम जो दुविधा में रही प्रेम की विवशता की
तीर इस भाव से फेंका कि पार हो न सका 
मैं तड़पता ही रहा पीर लिये प्राणों में
मरके भी मर न सका, हँस न सका, रो न सका
३.
खो गयी तुम जगत के रेले में
यों तड़पता हूँ मैं अकेले में
अपने माता-पिता से छूटा हुआ
जैसे बालक हो कोई मेले में
४.
बोलना किसीसे, देख लेना किसी और को
हृदय किसीका छीन, देना किसी और को
आपकी कला थी, किन्तु काल बनी प्राण की 
नाव में बिठा के मुझे, खेना किसी और को