भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रंग लुटाती वर्षा आई (कविता) / शिवराज भारतीय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराज भारतीय |संग्रह=रंग लुटाती वर्षा आई / शिवर…)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शिवराज भारतीय
 
|रचनाकार=शिवराज भारतीय
 
|संग्रह=रंग लुटाती वर्षा आई / शिवराज भारतीय
 
|संग्रह=रंग लुटाती वर्षा आई / शिवराज भारतीय
}}
+
}}{{KKAnthologyVarsha}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
<poem>
 
<poem>

18:34, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण


उमड़-घुमड़ कर बादल उमड़े
सनन्-सनन् चलती पुरवाई,
रिमझीम-रिमझी कदम ताल से
रंग लुटाती वर्षा आई।

बाग-बगीच लगे महकने
मोर ख़ुशी से लगे थिरकने,
झूमें-चहके पंछी सारे
कोयल कूक-कूक मुस्काई।
रिमझीम-रिमझी कदम ताल से
रंग लुटाती वर्षा आई।

छप-छप पानी में सब कूदें
थप-थप करके बनें घरौंदें,
टुन्नु-मुन्नु ने कागज की
रंग-रंगीली नाव चलाई।
रिमझीम-रिमझी कदम ताल से
रंग लुटाती वर्षा आई।

कल-कल छल-छल नदिया उमड़ी
भर गए सारे ताल-तलाई,
रून झुन बैल चले खेतों में
मिट्टी की खुश्बू मन भाई।
रिमझीम-रिमझीम कदम ताल से,
रंग लुटाती वर्षा आई।