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रंग / रवि कुमार

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रंग बहुत महत्वपूर्ण होते हैं
इसलिए भी कि
हम उनमें ज़्यादा फ़र्क कर पाते हैं
कहते हैं पशुओं को
रंग महसूस नहीं हो पाते
गोया रंगों से सरोबार होना
शायद ज़्यादा आदमी होना है
यह समझ
गहरे से पैबस्त है दिमाग़ों में
तभी तो यह हो पा रहा है
कि
जितनी बेनूर होती जा रही है ज़िंदगी
हम रचते जा रहे हैं
अपने चौतरफ़ रंगों का संसार
चहरे की ज़र्दी
और मन की कालिख
रंगों में कहीं दब सी जाती है