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रंग : छह कविताएँ-2 (नीला) / एकांत श्रीवास्तव

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शताब्दियों से यह हमारे आसमान का रंग है
और हमारी नदियों का मन
थरथराता है इसी रंग में

इसी रंग में डूबे हैं अलसी के सहस्‍ञों फूल

यह रंग है उस स्‍याही का
जो फैली है बच्‍चों की
उंगलियों और कमीजों पर
यह रंग है मॉं की साड़ी की किनार का
दोस्‍त के अंतर्देशीय का
यही रंग है बरसों बाद

यह रंग है तुम्‍हारी पसंद
तुम्‍हारे मन और सपनों के बहुत निकट यह रंग है
और उस दिन भी ठीक यही रंग होगा आसमान का
इन्‍तजार की दुर्गम घाटियों को पार करने के बाद
जिस दिन तुमसे मिलूंगा

इस रंग से जुड़ी हैं
प्रिय और अप्रिय यादें
अक्‍सर मेरी नींद में टपकता है नीला रक्‍त
और चौंककर उठ जाता हूं मैं
यही, हॉं, यही रंग भाई की देह का
मृत्‍यु से पहले
और सर्प दंश के बाद

मैं इसे भूल नहीं सकता
कि यह रंग है समय की पीठ पर.