Last modified on 29 जून 2011, at 08:15

रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं / शृंगार-लतिका / द्विज

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:15, 29 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }}{{KKAnthologyBasant}} {{KKPageNavigation |पीछे=पलास-प्रसून किधौं न…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नाराच
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)

रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं । प्रभा-निहारि हारि, हारि, चित्त-बृत्ति मोहईं ॥
समीर मंद मंद डोलि, द्वार पैं निकुंज के । पसारि पाँवड़े रहे, चहूँ प्रसूण-पुंज के ॥२४॥