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रथ / वैभव भारतीय

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फँस गया तुम्हारा रथ प्रियवर!
अब इसे खींच ना पाओगे
विक्रेता हो तुम बहुत कुशल
पर गोबर बेच ना पाओगे।

तुमने खेलें हैं बड़े दाँव
सहलायें है कितनों के पाँव
विपदाओं को दूषित करके
खाये कितनों के सर के छाँव
पर नया सबेरा अब अपनी
झोली में डाल ना पाओगे
फँस गया तुम्हारा रथ प्रियवर!
अब इसे खींच ना पाओगे।

तुम राजनीति को जो समझो
पर ये कोई जागीर नहीं
ये शाक्य वंश की संसद है
तैमूरों की शमशीर नहीं
अपनी आपराधिक गतिविधियाँ
तुम फिर से सींच ना पाओगे
फँस गया तुमरा रथ प्रियवर!
अब इसे खींच ना पाओगे।

ये दलित कृषक महिला पिछड़ा
ये युवा और तबका बिछड़ा
ये बात सामाजिक न्यायों की
केवल विपक्ष ने ही पकड़ा
अब इन मीठी बातों से तुम
अब इन उथले वादों से तुम
जनता को रीझ ना पाओगे
धँस गया तुम्हारा रथ प्रियवर!
अब इसे खींच ना पाओगे
विक्रेता हो तुम बहुत कुशल
पर गोबर बेच ना पाओगे।