भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राख हटी तो अब हुए सोले लोग / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:38, 27 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>राख हटी तो अब हुए सोले लोग। आज है अपनी ताक़त तोले लोग। चारों तरफ…)
राख हटी तो अब हुए सोले लोग।
आज है अपनी ताक़त तोले लोग।
चारों तरफ़ उठ रही हैं आवाज़े,
लगता कई दिनों बाद बोले लोग!
फितरत वही है सदा डसने वाली,
आये हैं फिर बदलकर चोले लोग!
उनको कहते आग लगा देंगे हम,
कितने मायूस, कितने भोले लोग!
खुद देखें, न देखें, लेकिन हो भोर,
घूम रहे हैं लिये हथगोले लोग!